पूजा विधि - सरस्वती पूजा
1. पूजा की शुरुआत में एक पात्र में पानी रखें और उसमें सुपारी डालें। उसे कलश के रूप में स्थापित करें।
2. कलश पर एक पुष्पमाला रखें।
3. सरस्वती मूर्ति को एक चौकी पर स्थापित करें।
4. सरस्वती माता की पूजा के लिए उसे पुष्पमाला से सजाएं।
5. पूजा थाली पर दीपक, अक्षत, फूल और प्रसाद रखें।
6. अब पूजा थाली को सरस्वती माता की ओर मुख करके ध्यान दें।
7. अपनी संकल्प के बाद, दीपक को जलाएं और मंत्रों के साथ सरस्वती माता की पूजा करें।
8. मंत्रों का जाप करें और अक्षत को सरस्वती माता के चरणों में अर्पित करें।
9. फूलों से माला बनाएं और सरस्वती माता के गले में सजाएं।
10. अंत में, प्रसाद को भोग बनाएं और उसे सरस्वती माता को अर्पित करें।
11. पूजा के बाद आरती गाएं और अपने परिवार और मित्रों के साथ प्रसाद बांटें।
यहां उपर्युक्त विधि केवल सामान्य दिखाने के लिए है। आप विशेषताओं के अनुसार और अपनी परंपरा के अनुसार भी पूजा का आयोजन कर सकते हैं। सरस्वती पूजा के दौरान मान्यताओं और रीति-रिवाजों का सम्मान करना महत्वपूर्ण है।
पूजा सामग्री - सरस्वती पूजा
1. सरस्वती मूर्ति
2. एक पूजा थाली
3. पूजा के लिए फूल
4. अक्षत (चावल के दाने)
5. पुष्पमाला
6. दीपक और घी
7. पूजा के लिए प्रसाद (मिठाई)
8. कलश (पानी और सुपारी से भरा हुआ)
पूजा कथा - सरस्वती पूजा
बसंत पंचमी की कथा:
बसंत पंचमी की कथा:
प्रकटित होते ही जगतजननी सरस्वती देवी ने मनुष्यों को विद्या, ज्ञान, कला और संगीत की वरदान देने का संकल्प लिया। वे सरस्वती माता के रूप में जानी जाती हैं।
बहुत समय पहले की बात है, एक राजा था जिनका नाम सुधीर था। वह बहुत धार्मिक और न्यायप्रिय राजा थे। राजमहल में उनकी रानी के साथ बड़ी संख्या में ब्राह्मणों का भोजन किया जाता था।
एक दिन, एक ब्राह्मण राजा सुधीर के दरबार में आए और उनसे विद्या की मांग की। उसने कहा कि वह बहुत गरीब है और उसे अच्छी शिक्षा प्राप्त करने का मौका नहीं मिला है। वह यही चाहता है कि राजा उसे विद्या का आशीर्वाद दें।
राजा सुधीर ने उसे अपने आशीर्वाद दिए और उसे बड़ी सम्मान के साथ राजमहल से भेजा। ब्राह्मण विद्या की प्राप्ति के लिए तत्पर हो गया और वह अपने गुरु के पास चला गया।
समय बितते बितते, ब्राह्मण विद्या का ज्ञान प्राप्त करने लगा और वह बहुत ही विद्वान् हो गया। उसने अपने ज्ञान को धरती पर फैलाने का निर्णय लिया।
ब्राह्मण ने अपने गुरु को अभिवादन करने के लिए वापस राजमहल जाने का निर्णय लिया। जब वह वापस आए, तो उन्हें देखकर सुधीर राजा ने उन्हें बहुत सम्मानित किया।
ब्राह्मण ने राजा सुधीर को विद्या के आशीर्वाद देने के लिए साधारण सा तीर्थक एक पेड़ लगाने की प्रार्थना की। राजा ने उसकी प्रार्थना स्वीकार की और ब्राह्मण के लिए एक उचित स्थान चुन लिया।
ब्राह्मण ने वहां एक छोटी सी मंदिर बनाई और उसमें विद्या की मूर्ति स्थापित की। मंदिर के चारों ओर एक चौक बनाया गया और राजा ने उसे "सरस्वती चौक" के नाम से जाना जाने लगा।
इसी चौक की पूजा और उसकी प्रार्थना से प्राणियों को ज्ञान, बुद्धि और कला की प्राप्ति होती है। सरस्वती माता द्वारा दी गई विद्या और ज्ञान सभी के लिए महत्वपूर्ण है और सरस्वती पूजा इसी उद्देश्य को प्राप्त करती है।
इस प्रकार, सरस्वती पूजा कथा समाप्त होती है। इस कथा के माध्यम से हमें सरस्वती माता की महिमा और उनके विद्या और ज्ञान के प्रति आदर और समर्पण का आभास होता है। सरस्वती पूजा को मनाने से हमें ज्ञान और कला में सफलता प्राप्त होती है।
पूजा आरती - सरस्वती पूजा
ॐ जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता।
सद्गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
चंद्रवदनि पद्मासिनी, ध्रुति मंगलकारी।
सोहें शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी ॥ जय…..
बाएं कर में वीणा, दाएं कर में माला।
शीश मुकुट मणी सोहें, गल मोतियन माला ॥ जय…..
देवी शरण जो आएं, उनका उद्धार किया।
पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया ॥ जय…..
विद्या ज्ञान प्रदायिनी, ज्ञान प्रकाश भरो।
मोह, अज्ञान, तिमिर का जग से नाश करो ॥ जय…..
धूप, दीप, फल, मेवा मां स्वीकार करो।
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो ॥ जय…..
मां सरस्वती की आरती जो कोई जन गावें।
हितकारी, सुखकारी, ज्ञान भक्ती पावें ॥ जय…..
जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता।
सद्गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥ जय…..
ॐ जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता ।
सद्गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥ जय…..