अन्नप्राशन पूजा

पूजा विधि - अन्नप्राशन पूजा

1.      पूजा के लिए प्राथमिक तौर पर एक शुद्ध कमरे या पूजा स्थल तैयार करें। उसे फूल, धूप, दीप और गंध से सजाएं।

2.      शिशु को स्नान कराएं और उसे पवित्र वस्त्र में बदलें।

3.      पूजा स्थल पर अन्नप्राशन संस्कार मुद्रा रखें।

4.      शिशु को मुख्य पंचामृत से स्नान कराएं। यह पंचामृत गुड़, दही, घी, शहद और गंगाजल का मिश्रण होता है।

5.      शिशु के वस्त्र को हटाएं और उसे अन्नप्राशन संस्कार मुद्रा में बैठाएं।

6.      पुजारी या पंडितजी शिशु के मुख पर तिलक लगाएं और उसे विधि के अनुसार अन्न खिलाएं।

7.      शिशु को आहार खिलाने के बाद उसे पानी पिलाएं।

8.      शिशु को उसके आयु के अनुसार अन्न खिलाएं और इसके बाद परिवार के सदस्यों को भी अन्न खिलाएं।

9.      पूजा को समाप्त करें और प्रसाद बांटें।

यही है अन्नप्राशन पूजा की विधि हिंदी में। ध्यान दें कि यह केवल एक अवलोकन है और अन्नप्राशन पूजा के विभिन्न प्रांतों और परिवारों में थोड़ी भिन्नता हो सकती है, इसलिए अपने संबंधित पंडित या वैदिक पंथी की सलाह लें।



पूजा सामग्री - अन्नप्राशन पूजा

1.      पूजा स्थल की सजावट के लिए फूल, धूप, दीप, गंध आदि

2.      शुद्ध कपड़े की पट्टी और चादर

3.      अन्नप्राशन संस्कार मुद्रा (किसी धर्मिक वस्त्र या लोथड़ी को धोकर या स्वयं वस्त्र लेकर उसे पीली रंग से चिढ़कवा लें)

4.      शिशु के लिए एक छोटा प्याला और स्पून

5.      पूजा के लिए विधि पुस्तिका





पूजा कथा - अन्नप्राशन पूजा

श्री गणेशाय नमः।

श्री सरस्वत्यै नमः।

श्री विष्णवे नमः।

 

एक समय की बात है, एक बड़ा सागर था जिसके आस-पास एक छोटा गांव बसा था। उस गांव में एक परिवार रहता था जो बहुत ही संतुष्ट और सुखी था। इस परिवार में एक नवजात शिशु का जन्म हुआ था। इस शिशु का अन्नप्राशन संस्कार करने का समय गया था।

 

एक दिन, शिशु के पिता ने गांव के पंडित जी से मिलकर अन्नप्राशन संस्कार का आयोजन किया। पंडित जी ने उन्हें यह कथा सुनाई:

 

"एक बार भगवान विष्णु ने एक महाराज को देवस्थान में आमंत्रित किया। महाराज ने अपने छोटे बच्चे को भी साथ लिया। वह बच्चा बहुत ही प्यारा और मासूम था। भगवान विष्णु ने बच्चे को आशीर्वाद दिया और उसे एक मधुर स्वर में कहा, 'अपने जीवन में अन्न का महत्व जानकर आप हमेशा संतुष्ट और सुखी रहेंगे।'

 

महाराज ने वचन लिया और उसके बाद से वह बच्चा बहुत ही स्वस्थ, बुद्धिमान और सद्गुण संपन्न हो गया। अन्न के बिना किसी जीवित प्राणी का जीवन संभव नहीं हो सकता है। यह अन्न ही हमें ऊर्जा देता है, शरीर को बल देता है और हमें स्वस्थ रखता है।"

 

यह कथा शिशु के अन्नप्राशन के समय पंडित जी द्वारा कही जाती है। इसके बाद शिशु को अन्नप्राशन कराया जाता है और परिवार के सदस्यों को भोजन सेवित किया जाता है। इसके बाद पूजा को समाप्त करें और प्रसाद बांटें।

 

यह थी अन्नप्राशन कथा की हिंदी में एक संक्षेप वर्णन। ध्यान दें कि यह केवल एक कथा है और आप अपने परिवार या पंडित जी की सलाह पर जारी रखें।




पूजा आरती - अन्नप्राशन पूजा

अन्नप्राशन पूजा के दौरान अन्नप्राशन आरती भी अदा की जाती है। यह आरती भगवान विष्णु और अन्नमाता की महिमा को समर्पित होती है। नीचे दी गई है अन्नप्राशन आरती की हिंदी में एक संक्षेप रूप में:

 

आरती:

 

आरती कीजै विष्णु लाला,

आरती कीजै अन्नमाता।

मन्दिर ज्योति जलाई रे,

संतुष्ट आपना जनमाता॥

 

अन्नदाता जगदंबा है,

पालनहारी सुखकारी है।

शिशु को आहार देकर,

प्रसन्नता बहारी है॥

 

भुजा चढ़ाई अन्नप्राशन की,

आशीर्वाद दीजै अच्छी।

बच्चा सुखी, स्वस्थ रहे,

खुशियों से जीवन सजी॥

 

जय जय अन्नमाता,

विष्णु लाला जगदंबा।

तेरी महिमा अमर रहे,

मिले सबको अच्छा-अच्छा॥

 

यह थी अन्नप्राशन आरती की हिंदी में संक्षेपित रूप में। आप इस आरती को पूजा के दौरान गाकर अपने परिवार और अन्नप्राशन के समय उपयोग कर सकते हैं।