जन्माष्टमी पूजा

पूजा विधि - जन्माष्टमी पूजा

सामग्री:

 

1.      जन्माष्टमी पूजा की थाली (आरती की थाली)

2.      जन्माष्टमी के लिए फूल, पुष्प, धूप, दीप, गंगाजल, कपूर, रोली, चावल, सिन्दूर, नरियल, मिश्री, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, तुलसी के पत्ते)

3.      भगवान कृष्ण की मूर्ति या छवि

4.      धूपबत्ती, इंक, पंजा या धूपकर्स और आरती की थाली

5.      माला (जप माला)

6.      पूजा के लिए कपड़े (चादर, दुपट्टा, चोली, धोती)

 

 

पूजा की विधि:

1.      पूजा स्थल को साफ-सुथरा करें और धूपबत्ती या धूपकर्स जलाएं।

2.      पूजा स्थल पर ब्रज कृष्ण की मूर्ति या छवि को स्थापित करें।

3.      मूर्ति के आगे पूजा की थाली रखें।

4.      पहले से तैयार किए गए पंचामृत का अपने हाथों से स्वयं अभिषेक करें और फिर मूर्ति को अभिषेक करें।

5.      अब मिश्री को भगवान कृष्ण को अर्पित करें। इसके बाद फूल, पुष्प, धूप, दीप, गंगाजल, कपूर, रोली, चावल और सिन्दूर को भी अर्पित करें।

6.      माला को लेकर जप माला के सामने बैठें और भगवान कृष्ण के नाम का जाप करें। आप १०८ मंत्र जप कर सकते हैं।

7.      पूजा के बाद आरती उतारें। आरती के बाद मिश्री, फूल और प्रसाद को प्रदान करें।

8.      अखंड दिया जलाए रखें और यह दिया रात में बुझाने से पहले धूप दें।

 

इस रूप में, आप जन्माष्टमी पूजा कर सकते हैं। यदि आपके पास कोई विशेष प्राथना अथवा रिटुअल है, तो आप उसे भी अपने अनुसार शामिल कर सकते हैं। यह सुन्दरता का एक अवसर है, इसलिए अपने मन को शांत रखें और भगवान कृष्ण की पूजा का आनंद लें।




पूजा सामग्री - जन्माष्टमी पूजा

जन्माष्टमी पूजा के लिए आपको निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता हो सकती है:

 

1.      जन्माष्टमी पूजा की थाली (आरती की थाली)

2.      जन्माष्टमी के लिए फूल, पुष्प, पत्ते, टोरण, मंगलकलश, धूप, दीप, गंगाजल, कपूर, रोली, चावल, सिन्दूर, नरियल, मिश्री, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, तुलसी के पत्ते)

3.      भगवान कृष्ण की मूर्ति या छवि

4.      धूपबत्ती, इंक, पंजा या धूपकर्स और आरती की थाली

5.      माला (जप माला)

6.      पूजा के लिए कपड़े (चादर, दुपट्टा, चोली, धोती)

7.      पूजा के लिए व्रत भोजन की सामग्री जैसे फल, पंजीरी, मिश्री, चावल, दही, पूरी, कचौरी, मिठाई आदि

यह सामग्री आपकी जन्माष्टमी पूजा के लिए आवश्यक हो सकती हैं। आप अपनी पूजा समय से पहले सामग्री को तैयार कर सकते हैं ताकि पूजा के समय आपके पास सब कुछ उपलब्ध हो।




पूजा कथा - जन्माष्टमी पूजा

कृष्ण कथा:

 

द्वापर युग में, भगवान विष्णु के आठवें अवतार, श्रीकृष्ण, द्वारका में जन्मे। श्रीकृष्ण को नंद और यशोदा के यशोदा नंदन के रूप में जाना जाता है।

 

जन्माष्टमी का दिन आता है, जब कंस ने अपनी बहन देवकी के पुत्र की मृत्यु का भयानक फैसला सुनाया। वह दिन था मध्यरात्रि, जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।

 

श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, और देवकी और वसुदेव के आश्रय में उन्होंने एक चमत्कारिक रूप में दिखाई दिया। वे छोटे बालक के रूप में रोये और यशोदा माता के घर चले गए।

 

यशोदा माता ने श्रीकृष्ण को अपने घर में पाला और उन्हें अपने पुत्र के रूप में मनाने लगीं। वे उन्हें आदर्श बालक मानतीं थीं और उनके प्यार और करुणा से उन्हें पोषण करतीं थीं।

 

श्रीकृष्ण की बचपन की कई लीलाएं प्रस्तुत होती हैं, जिनमें मखन चोरी, गोपी वस्त्र हरण, रासलीला आदि शामिल हैं। यशोदा माता उनकी माखनचोरी को देखकर खुश होतीं थीं, जबकि वह दूसरे लोगों के दिलों को छूने के लिए अपनी लीलाओं को दिखाते थे।

 

इस प्रकार, जन्माष्टमी का दिन श्रीकृष्ण के जन्म के रूप में मनाया जाता है और भगवान कृष्ण की लीलाओं, माखन चोरी और रासलीला की स्मृति की जाती है। लोग उन्हें भगवान के रूप में पूजते हैं और उनकी कथा का पाठ करते हैं। इस दिन व्रत रखा जाता है और जन्माष्टमी की रात्रि में पूजा और आरती की जाती है।



पूजा आरती - जन्माष्टमी पूजा

आरती श्री कुंज बिहारी की

 

आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।

गले में बैजन्ती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।

श्रवन में कुंडल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।।

नैनन बीच, बसहि उरबीच, सुरतिया रूप उजारी की ।।

आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।

 

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।

लतन में ठाढ़ै बनमाली, भ्रमर सी अलक।

कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक, ललित छबि श्यामा प्यारी की।।

आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।

 

कनकमय मोर मुकट बिलसे, देवता दरसन को तरसे।

गगनसों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग मधुर मिरदंग।।

ग्वालनी संग, अतुल रति गोप कुमारी की।।

आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।

 

जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्री गंगै

स्मरन ते होत मोह भंगा, बसी शिव सीस जटाके बीच।

हरै अघ कीच, चरन छबि श्री बनवारी की।।

आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।

 

चमकती उज्जवल तट रेनू, बज रही वृन्दावन बेनू।

चहुं दिसि गोपी ग्वाल धेनू, हसत मृदु मंद चांदनी चंद ।

कटत भव फंद, टेर सुनु दीन भिखारी की।।

आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।