पूजा विधि - मकर संक्रांति पूजन
मकर संक्रांति को पूरे भारत में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है और विधियों में थोड़ी विविधता हो सकती है। यहां मकर संक्रांति के पूजन के लिए एक सामान्य विधि का वर्णन किया गया है:
सामग्री:
1. पूजा स्थल की सजावट के लिए पूजा थाली
2. चौकी या आसन
3. अगरबत्ती, दीपक और घी
4. गंगाजल या पानी का कलश
5. फूल, पुष्प माला और अपारसारी
6. चावल, दाल, गुड़, घी, दूध, खीर और फल
पूजन की विधि:
1. सबसे पहले पूजा स्थल को साफ सुथरा करें और चौकी या आसन स्थापित करें।
2. अपने इष्ट देवता की मूर्ति को पूजा स्थल पर स्थापित करें।
3. पूजा थाली पर अगरबत्ती, दीपक और घी रखें। अगरबत्ती को जलाएं और दीपक को प्रज्वलित करें।
4. कलश को गंगाजल या पानी से पूर्ण करें और उस पर पुष्प माला डालें।
5. कलश को पूजा स्थल पर स्थापित करें।
6. मूर्ति, कलश और अपारसारी को पुष्प और अपने आराध्य देवता के नाम से प्रणाम करें।
7. अब दूध, खीर
, घी, चावल, दाल और गुड़ को पूजा के लिए बनाएं।
8. प्रसाद के रूप में फल को भी बनाएं और पूजा स्थल पर रखें।
9. पूजा के बाद, प्रसाद को पूजा स्थल से निकालें और इसे सभी को बांटें।
यहां यह ध्यान देने योग्य है कि यह सामान्य मकर संक्रांति पूजन विधि है, और विभिन्न स्थानों और परंपराओं में इसमें थोड़ी विविधता हो सकती है। पूजा विधि को संबंधित स्थान और परंपराओं के अनुसार अपनाएं।
पूजा सामग्री - मकर संक्रांति पूजन
मकर संक्रांति पूजन के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:
1. गंगाजल या पवित्र जल: पूजन के लिए शुद्ध और पवित्र जल की आवश्यकता होती है। यह जल पूजा के लिए उपयुक्त होता है।
2. पूजा की थाली: एक पूजा थाली जिसमें दीपक, रोली, चावल, कलश, रक्षा सूत्र, कुमकुम, गंगाजल आदि रखी जा सकती है।
3. दीपक और दीपावली: सूर्य देवता की पूजा के लिए दीपावली और दीपकों की आवश्यकता होती है। इसे घी या तेल से प्रज्वलित किया जाता है।
4. फूल: पूजा के लिए फूलों की सामग्री, जैसे मरिगोल्ड, रोज़, चमेली, गेंदा आदि उपयोगी होती है।
5. रोली और कुमकुम: पूजा के लिए रोली और कुमकुम का उपयोग तिलक और अर्चना में किया जाता है।
6. अक्षत (चावल): पूजा के लिए अक्षत (अनिवार्य रूप से चावल) की आवश्यकता होती है।
7. गुड़ और तिल: मकर संक्रांति के पूजन में गुड़ और तिल का प्रयोग होता है। तिल के लड्डू और गुड
पूजा कथा - मकर संक्रांति पूजन
मकर संक्रांति पूजन कथा निम्नलिखित है:
एक समय की बात है, देवलोक में देवताओं और ऋषियों ने मिलकर ब्रह्माजी के पास जाकर पृथ्वीलोक के लोगों की परेशानियों की शिकायत की। वे कह रहे थे कि मनुष्यों को अपराधों में लीन होने के कारण वे अपनी सुख-शांति खो रहे हैं और इससे उनकी सभी दुःखों की वजह बन रही है।
ब्रह्माजी ने इस पर चिंता करते हुए कहा, "दुःख और अपराधों को दूर करने के लिए मैं एक विशेष अवसर बनाऊंगा। मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपनी उच्च स्थान पर होगा और उसकी प्रकाशमान किरणें भूमि पर अधिक प्रभावी होंगी। इस दिन मनुष्यों को अपने पापों से छुटकारा प्राप्त होगा।"
देवताओं और ऋषियों को यह विचार पसंद आया और उन्होंने ब्रह्माजी की सिफारिश स्वीकार की।
फिर से ब्रह्माजी बोले, "मकर संक्रांति के दिन मानव जाति को सूर्य की ऊष्णता और प्रकाश की शक्ति से प्रार्थना करनी चाहिए। यह सूर्य उत्तरायण की प्रारंभिक गणना है, जब स
ूर्य की ऊर्जा और शक्ति बढ़ती है। मनुष्यों को अपने प्रतीक और पुण्य कर्मों के साथ सूर्य की आराधना करनी चाहिए।"
अतः, उस दिन से मकर संक्रांति पूजन का आयोजन किया जाता है और लोग सूर्य देवता की प्रार्थना और आराधना करते हैं। सूर्य देवता को विशेष भोग और अर्चना द्वारा प्रसन्न किया जाता है। इस दिन के प्रथम भोजन का महत्व भी है, जिसे खीर और तिल के लड्डू के रूप में बनाया जाता है।
मकर संक्रांति पूजन कथा लोगों को सूर्य देवता के महत्व के बारे में जागरूक करती है और उन्हें अपने प्रतीक के साथ ध्यान और आराधना करने के लिए प्रेरित करती है।
पूजा आरती - मकर संक्रांति पूजन
मकर संक्रांति पूजन के दौरान, सूर्य देवता की आरती का पाठ किया जाता है। निम्नलिखित हिंदी में मकर संक्रांति पूजन आरती दी गई है:
आरती:
जय जय मकरध्वज उठाया।
त्रिभुवन सबके स्वामी आया॥
जय जय सूर्य देवता।
हो तुम हमारे विजेता॥
तापनहार, जग के स्वामी।
हो शरण तुम्हारी हमारी॥
ज्योति द्वारा प्रज्वलित जगदीश।
हो जगदम्बे की आशीष॥
मकर संक्रांति के दिन प्रगटित।
हो मंगल करो अभिलाषित॥
प्रकटित करो आप की शक्ति।
दूर करो दुःख, भय और अभिशाप॥
मंगल करो धरती, गगन, पानी।
हो समस्त लोकों में शांति॥
आरती गावे श्रद्धा भरी।
हो मकर संक्रांति की भरी॥
आरती गावे भक्ति और प्रेम।
हो तुम्हारी महिमा अनंत॥
जय जय मकरध्वज उठाया।
त्रिभुवन सबके स्वामी आया॥
जय जय सूर्य देवता।
हो तुम हमारे विजेता॥
आरती करते हुए सभी भक्तों द्वारा आरती दीपकों को घुमाते हुए सूर्य देवता की आरती को प्रदर
्शित करें। आरती के बाद, सभी भक्त भक्तिभाव से सूर्य देवता की प्रार्थना कर सकते हैं।