हनुमान जी के बेटे का क्या हुआ | आज वो कहा है (पुरी जानकारी )

हनुमान जी के बेटे का क्या हुआ | आज वो कहा है (पुरी जानकारी )

हनुमान जी के बेटे का क्या हुआ | आज वो कहा है (पुरी जानकारी )


मकरध्वज, जिन्हें बजरंगबली का पुत्र माना जाता है, रामायण के बाद कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं में शामिल हुए हैं। यहां कुछ मुख्य घटनाएं दी जाती है


यहां दिए गए तथ्यों के आधार पर, बजरंगबली के पुत्र मकरध्वज का रामायण के बाद जीवन उनकी पिता की सेवा, धर्मशास्त्र के अध्ययन, और मुक्ति प्राप्ति के माध्यम से आगे बढ़ता है।




मान्यता के अनुसार, हनुमान जी के अलावा एक और पुत्र का नाम मकरध्वज (या मकरद्वाज) होता है। उनकी माता का नाम अग्नि था।


वैदिक साहित्य में उन्हें एक महान योद्धा और क्षत्रिय वीर के रूप में वर्णित किया गया है। मकरध्वज का अर्थ होता है "मकर के ध्वज" या "मकर ध्वजी"।



मकरध्वज को हनुमान जी के संगठन में एक बहुत ही महत्वपूर्ण सदस्य के रूप में माना जाता है।


उन्होंने लंका जलाने के लिए हनुमान जी की सहायता की थी और उनके पिता सुर्य और अग्नि की कृपा से वे मकर के रूप में जन्म ले आए थे।



हालांकि, हिंदू धर्म के अनुसार, इसके अलावा बजरंगबली के अन्य किसी पुत्र के बारे में कोई प्रमाणिक प्रमाण या पुराणिक कथा नहीं मिलती है।


यह केवल मान्यताओं और स्थानीय ग्रंथों के आधार पर बताया जाता है। इसलिए, मकरध्वज को एक पुत्र के रूप में विस्तारपूर्वक वर्णन करना अच्छी तरह से समर्थित नहीं हो सकता है।





कपिसेना, जो हनुमान जी के अन्य नामों में से एक है, की एक पत्नी थी जिनका नाम सुषेणा था। सुषेणा ने अपनी तपस्या और व्रत के बाद ईश्वर से बच्चे की कामना की थी।


वरुण देव ने उनकी याचना स्वीकार की और उन्हें वरदान दिया। एक दिन जब सुषेणा झील में स्नान कर रही थी, तो एक मकर (क्रॉकोडाइल) ने उन्हें अपने ग्रीष्मकालीन तापमान से बचाया।



उनकी अद्भुत कथा की सुन्दरता देखकर उन्हें मकर के रूप में जन्म लेने वाले इस बच्चे को मकरध्वज के नाम से पुकारा गया। मकरध्वज बचपन से ही धैर्यशाली, पराक्रमी और बुद्धिमान था। वह हनुमान जी के आदेशों पर लंका में जा कर श्री राम के संदेश और विचारों को विदेशों तक पहुंचाने का कार्य संपादित करता था।



मकरध्वज की बहादुरी, बुद्धिमत्ता और पराक्रम की कथाएं भी मशहूर हैं। उन्होंने राक्षसों के साथ युद्ध किया, भक्तों की सहायता की और धर्म की रक्षा की। उनकी माता अग्नि और पिता सुर्य के आशीर्वाद से उनकी बल, शक्ति और वीरता अत्यंत प्रभावशाली थी।


मकरध्वज वीरगति को प्राप्त हुए बिना ही अपनी धर्मरक्षा का कार्य संपादित करते रहे और भक्तों की सेवा में लगे रहे।



यहीं तक की कहानी हमें मिली है जो मकरध्वज के बारे में ज्ञात है। हालांकि, कृपया ध्यान दें कि यह कथा मान्यताओं, लोक कथाओं और स्थानीय ग्रंथों पर आधारित है और इसका इतिहासिक प्रमाण नहीं है।


कथाओं के अनुसार, मकरध्वज हनुमान जी के पुत्र के रूप में मान्यता में हैं, लेकिन यह व्यक्तिगत विश्लेषण पर निर्भर करेगा कि आप इसे किस प्रकार स्वीकार करते हैं।





मकरध्वज मकरध्वज के कुछ आद्भुत कहानि



युगांतर: रामायण के अंत में राम और सीता अयोध्या में लौटते हैं और युगांतर का समय आता है। मकरध्वज भी उस समय अपने पिता के साथ अयोध्या में वापस आते हैं।



मकरध्वज का विवाह: युगांतर के बाद, मकरध्वज की शादी ब्रह्माजी की सन्तान संबंधी बहुओं में से एक से होती है। विवाह के बाद, उन्हें एक पुत्र, नामकीन, प्राप्त होता है।



धर्मशास्त्र का अध्ययन: मकरध्वज एक ज्ञानी और तपस्वी थे। उन्होंने युगांतर के बाद अपने पिता की सहायता से अयोध्या में एक आश्रम स्थापित किया और वहां धर्मशास्त्र का अध्ययन और प्रचार करने में लग गए।



सेवा का कार्य: मकरध्वज ने अपने पिता बजरंगबली की सेवा करते रहे और उनकी दिशा में योगदान दिया। वे भक्तों को संबोधित करने, संगठन कार्यों में मदद करने और भगवान हनुमान की आराधना और पूजा में सक्रिय रहे।



मकरध्वज की मोक्ष प्राप्ति: रामायण के अनुसार, हनुमान को वर्णन में उल्लेख किया गया है कि वे चिरयुवी हैं और मुक्ति प्राप्त कर चुके हैं। इस तरह, मकरध्वज भी अपने जीवन में मुक्ति प्राप्त कर चुके हैं।





मकरध्वज के आखरी कहानि



हनुमान जी पाताल के द्वार पर पहुंचते हैं तो उन्हें एक वानर दिखाई देता है, जिसे देख वो हैरत में पड़ जाते हैं और मकरध्वज से उनका परिचय देने को कहते हैं. मकरध्वज अपना परिचय देते हुए बोलते हैं कि ‘मैं हनुमान पुत्र मकरध्वज हूं और पातालपुरी का द्वारपाल हूं’.


मकरध्वज का परिचय सुनकर हनुमान जी क्रोधित हो कर कहते हैं कि ‘यह तुम क्या कह रहे हो ? मैं ही हनुमान हूं और मैं बाल ब्रह्मचारी हूं. फिर भला तुम मेरे पुत्र कैसे हो सकते हो’ ?


हनुमान जी का परिचय पाते ही मकरध्वज उनके चरणों में गिर गए और हनुमान जी को प्रणाम कर अपनी उत्पत्ति की कथा सुनाई.


लेकिन यह कहकर कि वे अभी अपने श्रीराम और लक्ष्मण को लेने आए हैं, जैसे ही द्वार की ओर बढ़े वैसे ही मकरध्वज उनका मार्ग रोकते हुए


बोला- “पिताश्री! यह सत्य है कि मैं आपका पुत्र हूँ लेकिन अभी मैं अपने स्वामी की सेवा में हूँ।


इसलिए आप अन्दर नहीं जा सकते।”


हनुमान ने मकरध्वज को अनेक प्रकार से समझाने का प्रयास किया, किंतु वह द्वार से नहीं हटा। तब दोनों में घोर य़ुद्ध शुरु हो गया। देखते-ही-देखते हनुमान जी उसे अपनी पूँछ में बाँधकर पाताल में प्रवेश कर गए।


हनुमान सीधे देवी मंदिर में पहुँचे जहाँ अहिरावण राम-लक्ष्मण की बलि देने वाला था।


हनुमान जी को देखकर चामुंडा देवी पाताल लोक से प्रस्थान कर गईं। तब हनुमान जी देवी-रूप धारण करके वहाँ स्थापित हो गए।


कुछ देर के बाद अहिरावण वहाँ आया और पूजा अर्चना करके जैसे ही उसने राम-लक्ष्मण की बलि देने के लिए तलवार उठाई,


वैसे ही भयंकर गर्जन करते हुए हनुमान जी प्रकट हो गए और उसी तलवार से अहिरावण का वध कर दिया।


उन्होंने राम-लक्ष्मण को बंधन मुक्त किया। तब श्रीराम ने पूछा-“हनुमान! तुम्हारी पूँछ में यह कौन बँधा है? बिल्कुल तुम्हारे समान ही लग रहा है। इसे खोल दो।


” हनुमान ने मकरध्वज का परिचय देकर उसे बंधन मुक्त कर दिया। मकरध्वज ने श्रीराम के समक्ष सिर झुका लिया।


तब श्रीराम ने मकरध्वज का राज्याभिषेक कर उसे पाताल का राजा घोषित कर दिया और कहा कि भविष्य में वह अपने पिता के समान दूसरों की सेवा करे।


यह सुनकर मकरध्वज ने तीनों को प्रणाम किया। तीनों उसे आशीर्वाद देकर वहाँ से प्रस्थान कर गए। इस प्रकार मकरध्वज हनुमान पुत्र कहलाए।