पूजा विधि - गणेश चतुर्थी पूजा
गणेश चतुर्थी पूजा - भगवान गणेश की पूजा, जो बाधाओं को हटाने वाले हैं।
1. सुबह उठकर नियमित स्नान करें और पवित्र होंगे।
2. पूजा के लिए एक सुविधाजनक स्थान चुनें जहां पूजा की विधि का पालन किया जा सके।
3. अपने घर को साफ-सुथरा करें और पूजा के लिए विशेष आरंभिक दृश्य स्थापित करें।
4. पूजा की शुरुआत के लिए गणेश मूर्ति को स्थापित करें। मूर्ति की उच्च आराधना के लिए विशेष आसन स्थापित करें।
5. मूर्ति को पानी से स्नान कराएं और उसे सुगंधित चंदन से सजाएं।
6. मूर्ति के सामने पूजा थाली स्थापित करें और उसमें दीपक जलाएं।
7. मूर्ति की पूजा के लिए अक्षत, पुष्प, फल, मिठाई, पान के पत्ते, धूप और अगरबत्ती लगाएं।
8. मूर्ति को सुप्रभातमय गीत या आरती के साथ पूजें।
9. गणेश चतुर्थी की कथा सुनें और भक्ति भाव से पूजा करें।
10. पूजा के बाद आरती करें और मन्त्रों का जाप करें।
11. पूजा के बाद नैवेद्य को भगवान गणेश को समर्पित करें।
12. पूजा के अन्त में प्रसाद बांटें और उसे खाएं।
इस रूप में गणेश चतुर्थी पूजा पूरी हो जाती है। यह एक अद्यात्मिक और आध्यात्मिक अनुभव है जो भक्ति, श्रद्धा और आनंद के साथ मनाया जाता है।
पूजा सामग्री - गणेश चतुर्थी पूजा
1. गणेश मूर्ति
2. पूजा थाली
3. दीपक
4. गंध (सुगंधित चंदन)
5. अक्षत (रिसे हुए चावल)
6. पुष्प (फूल)
7. नैवेद्य (मिठाई और फल)
8. पान के पत्ते
9. कलश (जल से भरा हुआ)
10. धूप और अगरबत्ती
11. आरती की थाली
12. मन्त्र पुस्तिका
पूजा कथा - गणेश चतुर्थी पूजा
बहुत समय पहले की बात है, एक बार माता पार्वती ने अपने दिव्य गर्भ से एक सुंदर बालक को जन्म दिया। वह बालक थे भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र गणेश। उन्हें विशेष बुद्धि, विद्या और धैर्य का वरदान मिला था।
गणेश बचपन से ही बहुत ही बुद्धिमान और विनयी थे। एक दिन उन्होंने विश्वनाथ भगवान शिव की सेवा करने का निर्णय लिया। उन्होंने देवी पार्वती की आज्ञा से शिवलिंग पर रखी गई सेवा के लिए नियमित रूप से नगदा पैसा इकट्ठा करना शुरू किया। इससे वे धन का भंडार बना लेते और इससे उनकी मानसिक और आर्थिक समृद्धि होती थी।
एक दिन जब गणेश ने नगदा पैसा इकट्ठा करने की बात की, तो भगवान शिव ने उनसे कहा कि उन्हें सभी देवताओं की पूजा करनी चाहिए। तभी वे सबके आशीर्वाद से पूजा में सम्पन्न होंगे। गणेश ने भगवान शिव की बात मान ली और नियमित रूप से सभी देवताओं की पूजा करने लगे। वे अपनी निष्ठा और समर्पण से प्रतिदिन देवताओं की पूजा करते थे।
एक दिन गणेश ने अपनी माता पार्वती से पूछा कि क्योंकि इतनी नियमित पूजा के बावजूद वे सभी देवताओं के आशीर्वाद से सम्पन्न नहीं हो पा रहे हैं। उनकी माता ने उन्हें कहा कि वे अगर अपनी मनोकामना के बिना किसी एक भक्त की पूजा नहीं करते हैं तो उन्हें अपने सभी आराधकों के साथ सच्ची प्रेम और श्रद्धा के साथ पूजा करनी चाहिए।
गणेश ने अपनी माता की बात मान ली और उनके कहने पर वे अगले दिन से एकमात्र भक्त की पूजा करने लगे। वह भक्त एक गरीब किसान था जिसका नाम ग्रुहण था। गणेश ने उसकी पूजा को अपने सबसे महत्वपूर्ण माना और उसकी मनोकामना पूरी की। इससे गणेश चतुर्थी के दिन ग्रुहण ने गणेश की पूजा करने का परंपरागत विधान शुरू किया।
इस प्रकार गणेश चतुर्थी पूजा का पर्व प्रारंभ हुआ जो आज भी हर साल धूमधाम से मनाया जाता है। यह पूजा भगवान गणेश की प्रतिष्ठा और आराधना का अवसर है और लोग इसे भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाते हैं।
माता पार्वती और भगवान शिव के आशीर्वाद से गणेश चतुर्थी का आयोजन किया जाता है और इस दिन लोग गणेश जी की पूजा, आरती और मन्त्र जप करते हैं। इस उपलक्ष्य में लोग गणेश मंदिर जाकर गणेश जी की प्रतिमा के सामने उपासना करते हैं और विभिन्न प्रकार के प्रसाद चढ़ाते हैं। यह पूजा विशेष रूप से धन, सौभाग्य और बुद्धि की प्राप्ति के लिए जानी जाती है।
इस रूप में गणेश चतुर्थी पूजा कथा समाप्त होती है। यह पूजा हमें गणेश जी के शुभाशीषों को प्राप्त करने का अवसर देती है और हमारे जीवन को सुख, समृद्धि और सम्पूर्णता से प्रदान करती है।
पूजा आरती - गणेश चतुर्थी पूजा
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे पर तिलक सोहे, मूसे की सवारी॥
पान चढ़े, फूल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करे सेवा॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
अंधन को आंधियारों से कैसे दूर करे।
शरीर भोले के गंगा, चारों ओर धरे॥
भक्त जनों के संकट, दास जनों के दूर करे।
काज को आप अपने, तैरे सब पीड़ सहे॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
अंत कोटि ब्रह्मांड निगाहे निस्तारे।
अंत धनुष बढ़ावत, सो त्रास नहीं पारे॥
सब सुख लहे तुम्हारी शरण, तुम रक्षक काहू को डारे।
आपन तेज निरालंभ सब जगत जाने पारे॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
सुर नारद मुनि भ्रम्या, कहि यही चारों वेदा।
वेदा साधे तुम्हारी सार, निगम अगम के खेदा॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
श्रीगणेशाय नमः॥