वास्तु शांति पूजा विधि

पूजा विधि - वास्तु शांति पूजा विधि

वास्तु शांति पूजा विधि

वास्तु शांति पूजा एक प्राचीन हिंदू रीति-रिवाज है, जिसका उद्देश्य घर में सकारात्मक ऊर्जा लाना और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करना होता है। यह पूजा घर के निर्माण या पुनर्निर्माण के बाद की जाती है। इस पूजा के दौरान, भगवान गणेश, नवग्रह, और वास्तु पुरुष की पूजा की जाती है। यहाँ वास्तु शांति पूजा की विधि विस्तृत रूप में दी जा रही है।

पूजा की तैयारी

1. सामग्री का प्रबंध:
- गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर
- कलश (पानी का घड़ा)
- नारियल
- आम के पत्ते
- हल्दी, कुमकुम, चावल
- फूल माला, धूप, दीपक, और अगरबत्ती
- पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और चीनी)
- फल, मिठाई और नैवेद्य
- सप्तधान्य (सात प्रकार के अनाज)
- लाल कपड़ा, सफेद कपड़ा, और पीले कपड़े
- पान के पत्ते, सुपारी, और सिक्के
- पंच पल्लव (पाँच प्रकार के पत्ते)

2. स्थान का चयन:
- पूजा के लिए घर के एक पवित्र और साफ स्थान का चयन करें। आमतौर पर पूजा गृह प्रवेश द्वार पर या पूजा कक्ष में की जाती है।


पूजा विधि

1. आचमन और शुद्धि:
- पूजा स्थल पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- आचमन के लिए जल लें और तीन बार पियें। इसके बाद हाथ धोएं और पुनः आचमन करें।

2. संकल्प:
- अपने हाथ में जल, फूल, और अक्षत (चावल) लेकर संकल्प करें। अपने गोत्र, नाम, और उद्देश्य का उच्चारण करें और जल छोड़ दें।

3. गणेश पूजा:
- गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर को एक स्वच्छ स्थान पर स्थापित करें।
- उनको हल्दी, कुमकुम, और चावल अर्पित करें।
- फूल, धूप, और दीपक अर्पित करें।
- गणेश मंत्र "ॐ गं गणपतये नमः" का जप करें।
- उनको नैवेद्य (मिठाई) और फल अर्पित करें।

4. कलश स्थापना:
- एक ताम्बे या पीतल के कलश में जल भरें।
- उसमें आम के पत्ते और एक नारियल रखें।
- कलश को पूजा स्थल पर स्थापित करें और उस पर हल्दी, कुमकुम, और चावल अर्पित करें।
- कलश पर लाल कपड़ा बांधें।

5. वास्तु पुरुष पूजा:
- वास्तु पुरुष की तस्वीर या यंत्र को एक स्वच्छ स्थान पर रखें।
- उनको हल्दी, कुमकुम, और चावल अर्पित करें।
- फूल, धूप, और दीपक अर्पित करें।
- वास्तु पुरुष मंत्र "ॐ वास्तोष्पतये नमः" का जप करें।

6. नवग्रह पूजा:
- नवग्रहों के प्रतीक स्वरूप नौ छोटे पात्र रखें।
- प्रत्येक पात्र में सप्तधान्य (सात प्रकार के अनाज) रखें।
- हल्दी, कुमकुम, और चावल अर्पित करें।
- फूल, धूप, और दीपक अर्पित करें।
- नवग्रह मंत्रों का जप करें:

- सूर्य: "ॐ सूर्याय नमः"
- चन्द्रमा: "ॐ चंद्राय नमः"
- मंगल: "ॐ अंगारकाय नमः"
- बुध: "ॐ बुधाय नमः"
- गुरु: "ॐ बृहस्पतये नमः"
- शुक्र: "ॐ शुक्राय नमः"
- शनि: "ॐ शनैश्चराय नमः"
- राहु: "ॐ राहवे नमः"
- केतु: "ॐ केतवे नमः"

7. पंचदेव पूजा:
- भगवान शिव, विष्णु, देवी लक्ष्मी, सूर्य और गणेश जी की पूजा करें।
- प्रत्येक देवता को हल्दी, कुमकुम, और चावल अर्पित करें।
- फूल, धूप, और दीपक अर्पित करें।
- पंचदेव मंत्रों का जप करें:

- शिव: "ॐ नमः शिवाय"
- विष्णु: "ॐ विष्णवे नमः"
- लक्ष्मी: "ॐ महालक्ष्म्यै नमः"
- सूर्य: "ॐ सूर्याय नमः"
- गणेश: "ॐ गं गणपतये नमः"

8. हवन (यज्ञ):
- हवन कुंड की स्थापना करें।
- आम की लकड़ी, घी, और हवन सामग्री से अग्नि प्रज्वलित करें।
- हवन में प्रत्येक मंत्र के साथ आहुति दें। निम्नलिखित मंत्रों का जाप करें:
- "ॐ गणपतये स्वाहा"
- "ॐ वास्तोष्पतये स्वाहा"
- "ॐ नवग्रहाय स्वाहा"
- "ॐ पंचदेवताभ्यः स्वाहा"

9. अग्नि का परिक्रमा और पूर्णाहुति:
- हवन के बाद अग्नि की परिक्रमा करें।
- हवन कुंड में पूर्णाहुति (अंतिम आहुति) दें।

10. आशीर्वाद और प्रसाद वितरण:
- सभी देवी-देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त करें।
- पूजा के बाद प्रसाद का वितरण करें।

समापन

पूजा के अंत में, सभी सामग्री को नदी या किसी पवित्र जल स्रोत में प्रवाहित कर दें। घर के सभी सदस्यों को प्रसाद ग्रहण कराना चाहिए और घर में सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव करना चाहिए। वास्तु शांति पूजा के द्वारा घर में सुख, शांति, और समृद्धि का वास होता है।

यह थी वास्तु शांति पूजा की संक्षिप्त विधि। इस पूजा को विधिवत और सच्ची श्रद्धा के साथ करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा और खुशहाली का संचार होता है।


पूजा सामग्री - वास्तु शांति पूजा विधि

  1. सामग्री का प्रबंध:

    • गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर
    • कलश (पानी का घड़ा)
    • नारियल
    • आम के पत्ते
    • हल्दी, कुमकुम, चावल
    • फूल माला, धूप, दीपक, और अगरबत्ती
    • पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और चीनी)
    • फल, मिठाई और नैवेद्य
    • सप्तधान्य (सात प्रकार के अनाज)
    • लाल कपड़ा, सफेद कपड़ा, और पीले कपड़े
    • पान के पत्ते, सुपारी, और सिक्के
    • पंच पल्लव (पाँच प्रकार के पत्ते)



पूजा कथा - वास्तु शांति पूजा विधि

वास्तु शांति पूजा कथा

वास्तु शांति पूजा के दौरान एक विशेष कथा का पाठ किया जाता है, जो इस पूजा के महत्व और फल का वर्णन करती है। यह कथा निम्नलिखित है:

वास्तु शांति पूजा कथा

एक समय की बात है, प्राचीन काल में एक राजा था जिसका नाम वसु था। वसु राजा धर्मपरायण और प्रजा का हितैषी था। उसने अपने राज्य में धर्म, नीति और न्याय का पालन किया। एक दिन वसु राजा ने निश्चय किया कि वह अपने राज्य में एक विशाल महल का निर्माण करेगा। उसने अपने राजपुरोहित से परामर्श लिया और महल के निर्माण के लिए शुभ मुहूर्त निकाला।

महल का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। कई कुशल कारीगर और वास्तुशास्त्री वहां काम कर रहे थे। लेकिन जैसे ही महल का निर्माण कार्य आधे से अधिक हो गया, अचानक कई समस्याएं उत्पन्न होने लगीं। कारीगरों को काम में अड़चनें आने लगीं, कई अप्रत्याशित घटनाएँ घटित होने लगीं, और महल के निर्माण में रुकावटें आने लगीं।

राजा वसु ने इस समस्या का समाधान जानने के लिए अपने राजपुरोहित से परामर्श लिया। राजपुरोहित ने ध्यानमग्न होकर विचार किया और राजा को बताया कि यह सब वास्तु दोष के कारण हो रहा है। राजपुरोहित ने कहा कि इस समस्या का समाधान करने के लिए हमें वास्तु शांति पूजा करनी होगी, जिससे महल और राज्य में शांति और समृद्धि का वास हो।

राजा वसु ने राजपुरोहित की सलाह मानकर वास्तु शांति पूजा का आयोजन किया। पूजा के दिन, एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया जिसमें सभी देवी-देवताओं की विधिवत पूजा की गई। गणेश जी, नवग्रह, वास्तु पुरुष, और पंचदेवों की पूजा की गई। हवन और मंत्रों के जाप के साथ पूजा संपन्न हुई।

पूजा के अंत में, राजा वसु ने भगवान से प्रार्थना की और उनसे अपने महल और राज्य में शांति, समृद्धि, और शुभता की कृपा मांगी। पूजा के बाद, सभी समस्याएं दूर हो गईं, और महल का निर्माण बिना किसी बाधा के पूर्ण हो गया। महल अद्भुत सुंदरता और वैभव का प्रतीक बन गया।

राजा वसु ने वास्तु शांति पूजा के प्रभाव को देखते हुए, अपने राज्य में सभी लोगों को अपने घरों और भवनों के निर्माण से पहले वास्तु शांति पूजा करने की सलाह दी। इससे राज्य में शांति, समृद्धि, और खुशहाली का वास हुआ।

इस प्रकार, वास्तु शांति पूजा की कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन में किसी भी निर्माण कार्य के दौरान हमें वास्तु शास्त्र के नियमों का पालन करना चाहिए और वास्तु शांति पूजा का आयोजन करना चाहिए, जिससे सभी प्रकार के दोष दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।

निष्कर्ष

वास्तु शांति पूजा कथा का महत्व इस बात में है कि यह पूजा हमें जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने और नकारात्मक प्रभावों को दूर करने की शक्ति देती है। इस कथा का पाठ करने से पूजा की महत्ता और इसके परिणामों का बोध होता है। इसलिए, वास्तु शांति पूजा के दौरान इस कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए।


पूजा आरती - वास्तु शांति पूजा विधि

वास्तु शांति पूजा आरती

वास्तु शांति पूजा के अंत में आरती गाई जाती है, जो पूजा को पूर्णता प्रदान करती है और देवताओं की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है। यहाँ वास्तु शांति पूजा की आरती प्रस्तुत की जा रही है:


वास्तु शांति पूजा आरती

जय वास्तु देव, जय जय वास्तु देव।

सर्व सुखों का दाता, सबका कर सुख सेव।। जय वास्तु देव...

आपकी कृपा से ही, घर में सुख समृद्धि आए।
सभी कष्ट मिट जाते, दुखड़ा कोई न सताए।। जय वास्तु देव...

अज्ञान तिमिर हरता, ज्ञान का दीप जलाए।
सद्गुण और सदाचार, सबके मन में बसाए।। जय वास्तु देव...

भक्ति भाव से हम सब, तेरी महिमा गाते हैं।
तेरे दर पे आके हम, सुख की अनुभूति पाते हैं।। जय वास्तु देव...

वास्तु पुरुष की आरती, जो कोई नर गाए।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपत्ति पाए।। जय वास्तु देव...

आरती समाप्ति मंत्र:

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्।।

ॐ शांति: शांति: शांति: ॥

इस आरती को गाने के बाद, सभी उपस्थित जनों को आरती दिखाएँ और प्रसाद वितरित करें। इससे पूजा पूर्ण होती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।