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पूजा विधि - नवरात्रि पूजा

नवरात्रि पूजा – नौ रातों की पूजा, जो मां दुर्गा के नौ रूपों को समर्पित है।

  1. पूजा के लिए एक साफ स्थान तैयार करें जहां आप मां दुर्गा की मूर्ति या छवि रख सकें।
  2. स्थान को ध्यानपूर्वक सजाएँ और विशेष वस्त्र वितरित करें।
  3. पूर्णिमा तिथि के कलश में जल और गंध डालें। कलश को पूजा स्थान पर स्थापित करें।
  4. मां दुर्गा की मूर्ति या छवि के सामने पूजा सामग्री को रखें।
  5. पूजा की शुरुआत करने से पहले अपने हाथों को धो लें और स्नान करें।
  6. पूजा के लिए मन्त्रों का पाठ करें और मां दुर्गा की आरती करें।
  7. पूजा के दौरान मां दुर्गा की मूर्ति या छवि को वर्णन, तूरी, लोबान और कुमकुम से सजाएं।
  8. पंचामृत को मां दुर्गा की प्रतिमा पर चढ़ाएं और फल, मिठाई, नैवेद्य आदि को प्रसाद के रूप में प्रस्तुत करें।
  9. आरती और मंत्रों के पाठ के बाद, अपनी पूजा को समाप्त करें।
  10. आप पूजा के बाद अपने या अपने परिवार के सदस्यों के बीच भोजन का आयोजन कर सकते हैं।

यही है दशहरा पूजा की सामान्य विधि। हालांकि, यदि आप विशेष विधि या मंत्रों का पालन करना चाहते हैं, तो आपको अपने परिवार के पूजा पंडित या धार्मिक गाइड से संपर्क करना चाहिए।

पूजा सामग्री - नवरात्रि पूजा

1. मां दुर्गा की मूर्ति या छवि

2.पूजा के लिए विशेष वस्त्र

3.पूजा के लिए पूर्णिमा तिथि का कलश और गण्ड

4.पूजा सामग्री जैसे की सुपारी, दालचीनी, इलायची, नागकेशर, कपूर, धूप, दीप, अगरबत्ती, फूल, फल, नये कपड़े, कच्चे धने, दूध, शक्कर, घी आदि

5. पूजा के लिए कलश जल और गंध

6. वर्णन, तूरी, लोबान और कुमकुम

7. पूजा के लिए पंचामृत (दूध, दही, घी, शक्कर और मधु)

8.फल, मिठाई, नैवेद्य आदि

पूजा कथा - नवरात्रि पूजा​

नवरात्रि पूजा कथा (Navratri Puja Katha) हिन्दी में आपको देवी दुर्गा के महाकाव्य की कथा सुनाती है। यह कथा नवरात्रि के दौरान दुर्गा माता की पूजा और व्रत का महत्व बताती है। नवरात्रि में दुर्गा माता के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है।

 एक समय की बात है, प्राचीन काल में एक राजा नामक शक्तिशाली और साहसी राजा था। वह अपनी देशभक्ति के कारण बहुत प्रसिद्ध था। एक दिन, राजा के देश में असुरों ने आक्रमण कर दिया। राजा ने अपने सैन्य समेत असुरों के साथ लड़ने की कोशिश की, लेकिन उनका नामुमकिन मुकाबला था।

 असुरों की शक्ति बढ़ती चली गई और वे राजा के सामर्थ्य को थाम लेने के करीब थे। राजा ने युद्ध के बीच भगवान ब्रह्मा को प्रार्थना की और उनसे मदद मांगी। भगवान ब्रह्मा ने राजा को उसके सभी संघाती असुरों से बचने के लिए एक अत्यंत शक्तिशाली देवी की उपासना करने की सलाह दी।

 राजा ने भगवान ब्रह्मा की सलाह मानी और अपने साथी सैन्य के साथ जंगल में तपस्या करने चला गया। वहां पर वे नव देवी या नवदुर्गा के दिव्य रूपों की प्रतिमाएं बनाने लगे और उनकी पूजा करने लगे। इसके बाद, राजा ने देवी की उपासना करते हुए एक यज्ञ आयोजित किया।

 दुर्गा माता ने इस यज्ञ के दौरान अपनी एकादशी रूपों को अस्तित्व में आने का वचन दिया। देवी ने राजा को असुरों से लड़ने और उन्हें परास्त करने के लिए अपनी शक्ति प्रदान की। देवी ने राजा की योजना को साकार किया और उन्हें जीत दिलाई।

 इस विजय के बाद, नवरात्रि में देवी दुर्गा की पूजा की जाने लगी और यह परंपरा आज भी जारी है। नवरात्रि में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा और आराधना की जाती है, जो ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री और स्कंदमाता हैं।

 इस प्रकार, नवरात्रि कथा देवी दुर्गा के महाकाव्य को दर्शाती है और नवरात्रि के पावन पर्व के महत्व को बताती है। यह कथा धर्मिक भावनाओं को बढ़ावा देती है और लोगों को दुर्गा माता की शक्ति और आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए प्रेरित करती है।

पूजा आरती - नवरात्रि पूजा

पहला दिन

पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित है

शैलपुत्री का मतलब है “हिमालय की पुत्री”

 शैलपुत्री मां शक्ति का ही रुप हैं।

शैलपुत्री मां की आरती

शैलपुत्री मां बैल असवार। करें देवता जय जयकार।

शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।

पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।

ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।

सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।

उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।

घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।

श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।

जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।

मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।

दूसरा दिन

दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित है।

ब्रह्मचारिणी नाम ब्रह्मा से बना है जिसका मतलब होता है तपस्या

मां ब्रह्मचारिणी भी मां शक्ति का रूप हैं। इनके हाथ में जपमाला रहती है।

मां ब्रह्मचारिणी की आरती

जय अंबे ब्रह्मचारिणी माता।

जय चतुरानन प्रिय सुख दाता॥

ब्रह्मा जी के मन भाती हो।

ज्ञान सभी को सिखलाती हो॥

ब्रह्म मंत्र है जाप तुम्हारा।

जिसको जपे सरल संसारा॥

जय गायत्री वेद की माता।

जो जन जिस दिन तुम्हें ध्याता॥

कमी कोई रहने ना पाए।

उसकी विरति रहे ठिकाने॥

जो तेरी महिमा को जाने।

रद्रक्षा की माला ले कर॥

जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।

आलस छोड़ करे गुणगाना॥

माँ तुम उसको सुख पहुचाना।

ब्रह्मचारिणी तेरो नाम॥

पूर्ण करो सब मेरे काम।

भक्त तेरे चरणों का पुजारी॥

रखना लाज मेरी महतारी।

तीसरा दिन

तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा होती है।

 ये रूप साहस और सुंदरता का प्रतीक है

ये कष्टों को हरने वाली माता हैं।

मां चंद्रघंटा की आरती

जय माँ चन्द्रघंटा सुख धाम।

पूर्ण कीजो मेरे काम॥

चन्द्र समाज तू शीतल दाती।

चन्द्र तेज किरणों में समाती॥

क्रोध को शांत बनाने वाली।

मीठे बोल सिखाने वाली॥

मन की मालक मन भाती हो।

चंद्रघंटा तुम वर दाती हो॥

सुन्दर भाव को लाने वाली।

हर संकट में बचाने वाली॥

हर बुधवार को तुझे ध्याये।

श्रद्दा सहित तो विनय सुनाए॥

मूर्ति चन्द्र आकार बनाए।

शीश झुका कहे मन की बाता॥

पूर्ण आस करो जगत दाता।

कांचीपुर स्थान तुम्हारा॥

कर्नाटिका में मान तुम्हारा।

नाम तेरा रटू महारानी॥

भक्त की रक्षा करो भवानी।

चौथा दिन

नवरात्रि का चौथा दिन मां कूष्मांडा जी को समर्पित है

कुष्मांडा मां ही इस संसार को बनाने वाली हैं।

कूष्मांडा मां की आरती

कूष्मांडा जय जग सुखदानी।

मुझ पर दया करो महारानी॥

पिगंला ज्वालामुखी निराली।

शाकंबरी माँ भोली भाली॥

लाखों नाम निराले तेरे ।

भक्त कई मतवाले तेरे॥

भीमा पर्वत पर है डेरा।

स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥

सबकी सुनती हो जगदंबे।

सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥

तेरे दर्शन का मैं प्यासा।

पूर्ण कर दो मेरी आशा॥

माँ के मन में ममता भारी।

क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥

तेरे दर पर किया है डेरा।

दूर करो माँ संकट मेरा॥

मेरे कारज पूरे कर दो।

मेरे तुम भंडारे भर दो॥

तेरा दास तुझे ही ध्याए।

भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

पांचवां दिन

नवरात्रि का पांचवां दिन मां स्कंदमाता को समर्पित है।

स्कंदमाता देवताओं की सेना के सेनापति स्कंद की माता हैं।

मां स्कंदमाता की आरती

जय तेरी हो स्कंद माता।

पांचवां नाम तुम्हारा आता॥

सबके मन की जानन हारी।

जग जननी सबकी महतारी॥

तेरी जोत जलाता रहू मैं।

हरदम तुझे ध्याता रहू मै॥

कई नामों से तुझे पुकारा।

मुझे एक है तेरा सहारा॥

कही पहाडो पर है डेरा।

कई शहरों में तेरा बसेरा॥

हर मंदिर में तेरे नजारे।

गुण गाए तेरे भक्त प्यारे॥

भक्ति अपनी मुझे दिला दो।

शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो॥

इंद्र आदि देवता मिल सारे।

करे पुकार तुम्हारे द्वारे॥

दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए।

तू ही खंडा हाथ उठाए॥

दासों को सदा बचाने आयी।

भक्त की आस पुजाने आयी॥

छठा दिन

छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है।

 मां कात्यायनी की तीन आंखें और चार हाथ हैं।

मां कात्यायनी की आरती

जय जय अंबे जय कात्यायनी ।

जय जगमाता जग की महारानी ।।

बैजनाथ स्थान तुम्हारा ।

वहां वरदाती नाम पुकारा ।।

कई नाम हैं कई धाम हैं ।

यह स्थान भी तो सुखधाम है ।।

हर मंदिर में जोत तुम्हारी ।

कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी ।।

हर जगह उत्सव होते रहते ।

हर मंदिर में भक्त हैं कहते ।।

कात्यायनी रक्षक काया की ।

ग्रंथि काटे मोह माया की ।।

झूठे मोह से छुड़ानेवाली ।

अपना नाम जपानेवाली ।।

बृहस्पतिवार को पूजा करियो ।

ध्यान कात्यायनी का धरियो ।।

हर संकट को दूर करेगी ।

भंडारे भरपूर करेगी ।।

जो भी मां को भक्त पुकारे ।

कात्यायनी सब कष्ट निवारे ।।

सातवां दिन

नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा होती है।

 मां कालरात्रि की पूजा करने से आदमी को किसी का डर नहीं रहता और 

वो निडर हो जाता है।

मां कालरात्रि की आरती

कालरात्रि जय-जय-महाकाली।

काल के मुह से बचाने वाली॥

दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।

महाचंडी तेरा अवतार॥

पृथ्वी और आकाश पे सारा।

महाकाली है तेरा पसारा॥

खडग खप्पर रखने वाली।

दुष्टों का लहू चखने वाली॥

कलकत्ता स्थान तुम्हारा।

सब जगह देखूं तेरा नजारा॥

सभी देवता सब नर-नारी।

गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥

रक्तदंता और अन्नपूर्णा।

कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥

ना कोई चिंता रहे बीमारी।

ना कोई गम ना संकट भारी॥

उस पर कभी कष्ट ना आवें।

महाकाली माँ जिसे बचाबे॥

तू भी भक्त प्रेम से कह।

कालरात्रि माँ तेरी जय॥

आठवां दिन

नवरात्रि का आठवां दिन मां महागौरी जी को समर्पित है।

 मां महागौरी ज्ञान और संतोष प्रदान करती हैं।

मां महागौरी जी की आरती

 

जय महागौरी जगत की माया।

जया उमा भवानी जय महामाया॥

हरिद्वार कनखल के पासा।

महागौरी तेरी वहां निवासा॥

चंद्रकली ओर ममता अंबे।

जय शक्ति जय जय माँ जगंदबे॥

भीमा देवी विमला माता।

कौशिकी देवी जग विख्यता॥

हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा।

महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा॥

सती {सत} हवन कुंड में था जलाया।

उसी धुएं ने रूप काली बनाया॥

बना धर्म सिंह जो सवारी में आया।

तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया॥

तभी माँ ने महागौरी नाम पाया।

शरण आनेवाले का संकट मिटाया॥

शनिवार को तेरी पूजा जो करता।

माँ बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता॥

भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो।

महागौरी माँ तेरी हरदम ही जय हो॥

नौवां दिन

नवरात्रि के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री जी की पूजा होती है।

 मां के इस रुप के पास सभी आठ सिद्धियां हैं।

मां सिद्धिदात्री की आरती

जय सिद्धिदात्री मां तू सिद्धि की दाता ।

तू भक्तों की रक्षक तू दासों की माता ।।

तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि ।

तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि ।।

कठिन काम सिद्ध करती हो तुम ।

जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम ।।

तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है ।

तू जगदंबे दाती तू सर्व सिद्धि है ।।

रविवार को तेरा सुमिरन करे जो ।

तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो ।।

तू सब काज उसके करती है पूरे ।

कभी काम उसके रहे ना अधूरे ।।

तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया ।

रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया ।।

सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली ।

जो है तेरे दर का ही अंबे सवाली ।।

हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा ।

महा नंदा मंदिर में है वास तेरा ।।

मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता ।

भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता ।।

मां की आरती का वीडियो

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