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पूजा विधि - महामृत्युंजय मंत्र पूजा

महामृत्युंजय मंत्र, जो कि भगवान शिव का एक प्रमुख मंत्र है, अपने आराध्यतम रूप में जाना जाता है। यह मंत्र आयुर्वेदिक ज्ञान में मान्यता प्राप्त है और महामृत्युंजय मंत्र के जाप से स्वास्थ्य सुधारता है और रोगों के नाश होता है। इस मंत्र की पूजा विधि का वर्णन निम्नलिखित है:

सामग्री:
1. महामृत्युंजय मंत्र का प्रिंट आउट या पुस्तक
2. जल की कलश
3. थाली पर फूल, दीप, धूप, अक्षत, बेल पत्र, कलश स्थापन के लिए मिट्टी
4. पूजन सामग्री: गंध, कपूर, अगरबत्ती, अखंड दिया, कपड़े, रक्षा सूत्र, रोली, अर्चना उपचार सामग्री, फूल, अदरक, सरसों के तेल से बनी दिया, साधारण पूजा सामग्री।

पूजा विधि:
1. सभी सामग्री को सजाएँ। थाली पर मिट्टी का एक छोटा गड्ढा बनाएं और कलश को उसमें स्थापित करें।
2. कलश को पानी से भरें और उसमें अदरक रखें।
3. महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करें, साथ ही गंध, अक्षत, धूप, दीप, फूल आदि को प्रदान

करें।
4. अर्चना उपचार सामग्री को मंत्रों के साथ प्रदान करें और मंत्रों का जाप करें। आप जप के दौरान अपनी आंखें बंद कर सकते हैं और मन में मंत्र का ध्यान कर सकते हैं।
5. जब पूजा पूरी हो जाए, तो आरती करें और प्रशाद बांटें।

यह मंत्र का जाप आप किसी भी सामयिक या दैनिक पूजा में कर सकते हैं, अपने आवश्यकतानुसार। इसका नियमित जाप करने से आपको शांति, स्वास्थ्य और सुख की प्राप्ति हो सकती है। पूजा के दौरान आप विशेष ध्यान दें और आत्मीय भावना से इस मंत्र का जाप करें।

पूजा सामग्री - महामृत्युंजय मंत्र पूजा

भूमि पूजन के लिए आवश्यक सामग्री की सूची निम्नलिखित है:

1. हल्दी (Haldi)
2. कुमकुम (Kumkum)
3. अगरबत्ती (Agarbatti)
4. दीपक (Deepak)
5. फूल (Phool)
6. नारियल (Nariyal)
7. फल (Phal)
8. पान के पत्ते (Pan ke patte)
9. धूप (Dhoop)
10. गंगाजल (Gangajal) या पवित्र जल (Pavitr Jal)
11. कलश (Kalash)
12. वस्त्र (Vastra)
13. सुपारी (Supari)
14. नगरवासी नारियल (Nagarwasi Nariyal)

यह सामग्री भूमि पूजन में उपयोग होने वाली सामग्री है और इसका उपयोग पूजा के दौरान किया जाता है। इसे सावधानीपूर्वक और शुद्धता के साथ इस्तेमाल करें और पूजा की योजना के अनुसार उनका उपयोग करें।

पूजा कथा - महामृत्युंजय मंत्र पूजा

महामृत्युंजय मंत्र पूजा कथा को आप निम्नलिखित प्रकार से पढ़ सकते हैं:

कथा शुरू करने से पहले अपने मन को शुद्ध करें और गौरव भाव से मंत्र की पूजा के लिए अर्चना करें।

कथा:

एक समय की बात है, एक ऋषि ने अपने शिष्य के साथ अत्यंत तपस्या की और ईश्वर का ध्यान किया। उन्होंने विशेष शक्ति प्राप्त की थी जिससे वे रोग, दुःख और मृत्यु को दूर कर सकते थे। धरती पर एक गांव में एक राजा था जिसके पुत्र को अत्यंत बीमारी हो गई। उसका इलाज कराने के बावजूद उसका स्वास्थ्य नहीं सुधर रहा था। राजा ने उसे बचाने के लिए अपने ग्राम में विशेषज्ञ ऋषि को बुलवाया।

ऋषि ने ग्राम में आकर राजा से पूछा, “राजा, आपके पुत्र को क्या बीमारी हुई है?”

राजा ने कहा, “ऋषि महाराज, मेरे पुत्र को एक अज्ञात रोग हो गया है, जिसका कोई उपाय नहीं मिल रहा है। कृपया आप हमारी सहायता करें और हमें उपचार बताएं।”

ऋषि ने ध्यान से कहा, “राजा, आपके पुत्र को मृ

त्युंजय मंत्र का जाप करने की आवश्यकता है। यह मंत्र भगवान शिव के प्रतिष्ठित मंत्र है और यह उसकी कृपा का प्रतीक है। इस मंत्र के जाप से आपके पुत्र को रोग से मुक्ति मिलेगी।”

ऋषि की बात सुनकर राजा ने आदेश दिया कि महामृत्युंजय मंत्र का जाप अपने पुत्र के लिए किया जाए। सभी लोग ने मिलकर मंत्र का जाप किया और आरोग्य लाभ के लिए भगवान शिव की कृपा की प्रार्थना की।

श्रद्धालु लोगों की प्रार्थना और मंत्र के जाप से राजा का पुत्र स्वस्थ हो गया। इससे सभी लोगों में बड़ा आदर और श्रद्धा उत्पन्न हुई। इस प्रकार यह मंत्र लोगों को स्वास्थ्य, दीर्घायु, धन, सुख और शांति की प्राप्ति में सहायता करने लगा।

इस तरह से महामृत्युंजय मंत्र पूजा कथा समाप्त होती है। यह कथा मंत्र की महिमा और उपयोग का वर्णन करती है और सभी श्रद्धालु लोगों को इसकी महत्वपूर्णता को समझने में मदद करती है। महामृत्युंजय मंत्र का नियमित जाप करने से स्वास्थ्य और आयु बढ़ती है और सभी बाधाओं से छुटकारा मिलता है।

पूजा आरती - महामृत्युंजय मंत्र पूजा

महामृत्युंजय मंत्र पूजा के बाद आप निम्नलिखित आरती को पढ़ सकते हैं:

आरती:

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्‌॥

जटाधरं पिण्डानुसारकं ध्यायेद्धराधारम्‌।
कराग्रे वसतं वामे च वारदं वक्त्रे च इष्टाम्‌॥

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांगरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नमः शिवाय॥

भाणुजंबूनदभिनववैरिणं भोजीकूटांशुतुटमुक्तकेयूः।
वर्धनं मृगाधरतुण्डिलमां वन्देहं सदानन्दशिवं भजेऽहम्‌॥

आरती महादेव की जो भवभयहारी।
त्रिगुणात्मक त्रिनयन शाश्वत त्रिमूर्ति॥

जय महादेव, जय महादेव॥

इस आरती के द्वारा आप भगवान शिव की आराधना कर सकते हैं और उन्हें अपनी पूजा का सम्मान प्रदान कर सकते हैं। यह आरती शिव भक्तों द्वारा प्रेम और भक्ति के साथ गाई जाती है और उन्हें आनंद और शान्ति की

अनुभूति कराती है।

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